भूमिका
मनुष्य के जन्म से ही उसके फितरत में कुछ नया करने और कुछ नया पाने की तड़प
रही है।यही वजह है कि वह लगातार नए-नए अनुभवों के तलाश में प्रगतिशील रहता
है।नए-नए अंदाज से मन को संतुष्टि पंहुँचाता है और फिर विभिन्न पहलुओं से मनोरंजन
प्राप्त करता है|
कुछ ऐसी ही कहानी परिशिष्ट की आगमन की है|जब समाचार पत्रों की एक ही शैली से
लोंगो को बोरियत का एहसास होने लगा,तब अख़बारों में ऐसे तथ्यों को जगह दी जाने लगी
जो पाठको के लिए नया व अनछुआ अनुभव था|चूँकि राजनीतिक,सामाजिक और देशहित आदि
सूचनाओं के बीच ऐसे तथ्यों का जगह बन पाना मुश्किल था,इसलिए पत्रकारिता की शुरुआत
के कुछ दशकों बाद ही ऐसे तथ्यों व सूचनाओं को अलग से पृष्ठ प्रदान किया गया|जिसको
हम परिशिष्ट के नाम से जानते हैं|
परिशिष्ट का अर्थ
परिशिष्ट का शाब्दिक अर्थ है “छुटा हुआ या बाक़ी बचा हुआ” एपेंड़ेस्क अनुसूची भी
परिशिष्ट कहलाता है|पुस्तकों आदि के अंत में दे जाने वाली वे बातें जो मूल में आने
से रह गयी हों अथवा जो मूल में आई हुई बातों के स्पष्टीकरण के लिए हों, वह
परिशिष्ट है|पत्रकारिता के संदर्भ में समाचार से भिन्न वे तथ्य जो मुख्य समाचार का
हिस्सा नहीं बन सकते और फिर उनके लिए जो दो चार पन्नें विशेष नामों से प्रकाशित
किया जाता है वह परिशिष्ट कहलाता है|
संक्षिप्त इतिहास
शुरूआती दिनों में साप्ताहिक परिशिष्ट का चलन था|जिसमें समाज के गंभीर मुद्दों व स्वास्थ संबंधित सूचनाओं को जगह
दी जाती थी| लेकिन समय के साथ-साथ इसमें मुलभुत बदलाव होता रहा| हिंदी अखबारों में
बड़ा बदलाव नब्बे के दशक में आया| जब राष्ट्रिय सहारा ने प्रतिदिन अलग अलग विषयों
पर परिशिष्ट का प्रकाशन शुरू किया उन्हीं में से हस्तक्षेप और उमंग आज भी पाठकों
की पहली पसंद है| जैसे जैसे परिशिष्ट का रिवाज आम होता गया वैसे-वैसे उसमें बदलाव
भी आता गया|अब हर रोज़ विभिन्न विषयों को केंद्र में रखकर पाठक वर्ग के अनुरूप इसका
प्रकाशन होता है|समय के विकास के साथ परिशिष्ट का भी विकास होता रहा|बीसवीं
शताब्दी के आते-आते इसका स्वरूप और भाषा भी बदला|वर्तमान समय में यह पत्रकारिता का
अहम हिस्सा बन चूका है|इसकी अहमियत मुख्य समाचारों जैसा है|इसका अपना ही अस्तित्व
है|आज इसे किसी सहारे की ज़रूरत नहीं बल्कि उसने अपने बल पर ही पाठकवर्ग के दिलों व
भावनाओं पर कब्ज़ा कर लिया है|
परिशिष्ट वर्तमान समय में
आज स्वास्थ ,फिल्म ,फैशन ,रोजगार ,शिक्षा ,खान-पान ,मनोचिकित्सा , फिटनेस ,लाइफस्टाइल
,कला संस्कृति आदि विषयों पर प्रितिदीन परिशिष्ट निकलते हैं|कई समाचार-पत्र तो आयु
को ध्यान में रखकर परिशिष्ट प्रकाशित करते हैं|जैसे राष्ट्रीय सहारा का “नंदन” और
जनसत्ता का “रविवारी” बच्चों के लिए सामग्री छापता है|हिंदुस्तान “तन-मन” स्वास्थ
व फिटनेस से संबंधित “मूवी-मैजिक” फिल्म दुनिया से संबंधित और “नई दिशाएं” शिक्षा व
रोजगार से संबंधित परिशिष्ट निकालता है|इसी प्रकार राष्ट्रीय सहारा “हस्तक्षेप”
में सामाजिक मुद्दे,”करियर” में शिक्षा व रोजगार, “मोवी-मसाला” में फिल्म जगत और उमंग में विभिन्न विषयों को जगह
देता हैं|कुछ ऐसा ही दैनिक जागरण की “नई-राहें” और “सप्तरंग” आदि प्रस्तुत करते हैं|अमर उजाला ,
पंजाब केसरी , प्रजातंत्र लाइव और नई दुनिया आदि सभी समाचार पत्र इसी रह पर अग्रसर
हैं|
परिशिष्ट की भाषा
पत्रकारिता की कोई भी विधा हो उसमें भाषा की अहमियत सबसे ज्यादा होती है|भाषा
संप्रेषण का माध्यम है|भाषा वह साधन है जिसके द्धारा हम अपने विचारों का आदान-प्रदान
करते हैं और अपने भावों को व्यक्त करते हैं| पत्रकारिता में भी सूचनाओं का आदान
प्रदान किया जाता है इसलिए भाषा की जरूरत यहाँ भी होती है|इसकी भाषा सरल,सहज,आसान,बोधगम्य
और आम बोलचाल की होती है|परिशिष्ट भी पत्रकारिता की एक विधा है|इस में भी ऐसी भाषा
का प्रयोग किया जाता है जो आसानी से समझ में आजाये और पाठक के भावनाओं को छू
ले|परिशिष्ट में भाषा का इस्तेमाल पाठक वर्ग और विषय के आधार पर होता है|विषय
बदलते ही भाषा भी बदल जाती है|इसकी भाषा में ऐसी संवेदना होती है जो पाठक के रूचि
को बरक़रार रखते हुए उसका मनोरंजन करती है|
अगर हम मनोरंजनपरक परिशिष्ट की भाषा पर ध्यान दें तो उसकी भाषा बहुत आसन और
फ़िल्मी होती है इसको बहुत ही दिलचस्प अंदाज़ में लिखा जाता है|उस की भाषा इतनी
आकर्षक और रूचिपूर्ण होती है जो पाठक के मन को मूह लेती है फिर वह उसे पढ़ने पर
मजबूर हो जाता है|फिल्म की बात करें तो उसमें आजकल के फिल्मों की ही भाषा का
प्रयोग किया जाता है,क्योंकि इसका पाठक वर्ग भी फिल्में देखने वाला होता है| जैसे:
किसमें है कितना दम , औरत भी है नायक की भूमिका में ,”हैप्पी न्यू ईयर” में शाहरुख़
के एट पैक ऐब्स ,टाइटल का टंटा ,टाइटल की मारी पूजा बेचारी ,पूरी हुई अधोरी
ख्वाहिश , फिल्मों का बढ़ता क़द , फैनी नहीं डरेगी डरावने क्रिअचार से , ऐसी
रचनात्मक भाषा का इस्तेमाल करके फ़िल्मी दुनिया की ख़बरों को मनोरंजक अंदाज़ में पाठक
हेतु पेश किया जाता है|फैशन संबंधित परिशिष्ट में फैशन से जुड़े शब्दों का प्रयोग
होता है जैसे : पाकिस्तानी स्ट्रैट लॉन्ग सूट के अलावा पटियाला सूट भी महिलाएं खूब
पसंद करती हैं , कॉटन सूट , शिफ़ान सूट , सेमी स्टिच सूट आदि शब्दों का इस्तेमाल
होता है|चूँकि ऐसे परिशिष्ट उच्च वर्ग और उच्च मध्यवर्ग के लिए होता है इसलिए इसकी
भाषा में अंग्रेज़ी शब्दों का प्रयोग खूब किया जाता है जैसे :येलो कलर्स से सजाएं
अपने वेस्टर्न और ट्रेडिशनल आउटफिट्स , अच्छे ड्रेसिंग सेंस से भी बढ़ता है
आत्मविश्वास|कपड़े के रंग के लिए वही शब्द लिखे जाते हैं जो बाज़ार में इस्तेमाल
होते हैं जैसे: गोल्डन येलो , लेमन , मल्टीकलर कॉम्बिनेशन आदि|स्वास्थ्य संबंधित
परिशिष्ट में उसी भाषा को जगह दे जाती है जो उसके लिए इस्तेमाल होती है|उसी को
रोचक ढंग से लिखकर पाठक को परोसा जाता है जैसे: उस समय जागिंग करने से हीट स्ट्रोक
होने की आशंका बढ़ जाती है|उस समय आक्सीजन अधिक मात्रा में मिलती है और कैलोरी अधिक
नष्ट होती है|सांस्कृतिक और पर्यटन में साहित्य का सहारा लिया जाता है|दोनों की
भाषा बहुत आकर्षक व बोधगम्य होती है|पर्यटन में चित्रात्मक भाषा का इस्तेमाल किया
जाता है जो हमारे सामने पर्यटन स्थल की तस्वीर पेश कर देती है|इसकी भाषा इतनी
रूचिपूर्ण होती है की कुछ समय के लिए हम उसी में खो जाते हैं|स्थानीय भाषा का खूब
इस्तेमाल किया जाता है|जैसे: रहस्य और रोमांच से भरा छत्तीसगढ़ की यात्राएं आपको इस
से पहले की गई यात्राओं से बिल्कुल अलग अनुभव प्रदान करेगी ,इस के बारे में जानना
एक अलग ही यादगार अनुभव बन जाता है , यहाँ आपको दिखेगा आप के जिंदगी का सबसे
खूबसूरत प्राकृतिक नज़ारा , पहाड़ से दिखने वाला नज़ारा किसी स्वर्ग से कम नहीं,
सारनाथ जहाँ बहती है धर्मों की त्रिधारा| इस प्रकार की भाषाओं से हमारी भावों व
भावनावों में ऐसा जादू कर देते हैं की फिर हम उस परिशिष्ट को पढ़ कर ही दम लेते
हैं|ऐसा ही हाल रोजगार और शिक्षा वाले परिशिष्टों का भी है इसमें भाषा की
वर्णनात्मक शैली का इस्तेमाल किया जाता है|आकर्षक और लुभावने वाक्यों के ज़रिये
बातों-बातों में कामयाबी की कुंजी हमें थमा दी जाती है|जैसे: काल सेंटर ने भी दिए
अवसर, रूरल मैनेजमेंट में मौक़े ,गलतियों से बचें सक्सेस रोड पर बढ़ें , कैरियर इन
एग्रीकल्चर बनाएं मिटटी से सोना|बच्चों से संबंधित परिशिष्टों में चुटकले और कहानी
की भाषा बहुत आसान,मनोरंजन से भरपूर्ण और दिल में समां जाने वाली होती है|बच्चों
को “तुम” कहकर उन्हें कहानी के साथ जोड़ दिया जाता है जैसे:बच्चो तुम जानते हो की
कैसे गूलू ने अपने दोस्तों का साथ छोड़ दिया|गीत का अंदाज़ भी बच्चों की भाषा जैसी
होती है जैसे: हम क्यों नहीं इनका घर बनायें ....या इनके लिए छाता लगायें... हम तो
चाय पकोड़े खाएं... ये भोखी प्यासी चिल्लाएं|ऐसे ही तमाम परिशिष्टों में इस बात का
ध्यान रखा जाता है की उसकी भाषा उसके पाठक वर्ग को समझ में आजाये , वह उसे पढ़ कर
अपने मन को संतुष्टि पहुंचाए, मनोरंजन का अनुभव प्राप्त करे और ढेर सारी सूचनाएँ
भी एकत्र करे|
बेगाने अपने क्यों
भाषा की सबसे बड़ी खूबी यह होती है की वह दूसरी भाषाओं के शब्दों को
आवश्यकतानुसार ग्रहण कर लेते हैं|परिशिष्ट लेखन की भाषा की कहानी भी कुछ इसी
प्रकार है|इसकी भाषा में अनेक भाषाओं के
शब्द इस प्रकार घुल-मिल गए हैं कि वह अपने लगने लगे हैं|जैसे: परिशिष्टों में उर्दू
,फ़ारसी और अंग्रेज़ी आदि भाषाओं के कई शब्दों को आसानी के साथ लगातार प्रयोग किया
जा रहा है|इन शब्दों का प्रयोग इतना अधिक है की वह हिंदी भाषा के शब्द लगने लगे
हैं|चुनिंदा ,आमतौरपर ,कमोबेश ,फिक्रमंद ,हैरतअंगेज ,बक़ौल ,बयां ,तवज्जो ,बहरहाल
,इस में कोई शक नहीं आदि उर्दू और फ़ारसी के शब्द भाषा को आकर्षक ,खूबसूरत ,और
मनोरंजक बनाने के लिए परिशिष्टों में इस्तेमाल किय जाता है|कुछ ऐसा ही हाल अंग्रेज़ी शब्दों का भी है|इनका ग्रहण तेज़ी के
साथ जारी है|यहाँ पर परिशिष्टों की भाषा
निराशाजनक हो जाती है|क्योंकि उन अंग्रेज़ी
शब्दों का ग्रहण जिनका बदल हिंदी भाषा में नहीं है या अगर है लेकिन वह बोलने या
सुनने में अटपटे लगते हों तो ऐसे अंग्रेज़ी शब्दों का ज्यों का त्यों इस्तेमाल
मुनासिब मालूम होता है| जैसे- कॉलेज ,नर्स ,स्टेशन ,बिस्कुट ,इंटरनेट और कम्प्यूटर
,आदि। मगर जबरन अंग्रेज़ी शब्दों का बे मतलब प्रयोग हिंदी भाषा के साथ दोगलापन है|हाल
यह है कि परिशिष्ट न लिखकर सप्लीमेंट लिखा जाता है|
अंग्रेज़ी भाषा का वर्चस्व क्यों
परिशिष्टों में आमतौर पर विषय से संबंधित प्रयोग की भाषा पर तवज्जो दी जाती
है|चूँकि भूमंडलीकरण के इस दौर में अंग्रेज़ी भाषा का बोलबाला है इसलिए इस का प्रभाव
परिशिष्टों की भाषा पर भी पड़ा|जिसके फलस्वरूप धड़ल्ले से अंग्रेज़ी भाषा का प्रयोग
इस विधा में भी किया जा रहा है|चाहे अनचाहे हिंदी भाषा इसको ग्रहण करने पर मजबूर
है|
निष्कर्ष
दूसरी भाषाओं के शब्दों का चुनाव कर प्रयोग में लाना किसी भी भाषा के लिए
चिंता की बात नहीं है|इस से भाषा का फैलाव और उसका वर्चस्व बढ़ता है|लेकिन ऐसे
शब्दों का प्रयोग जिसकी आवश्यकता उस भाषा को न हो बल्कि उस से आकर्षक और खूबसूरत
शब्द उस में मौजूद हों तो यह उस भाषा के साथ ज़ियादती के सिवा कुछ नहीं|हक़ीक़त यह है
की बाज़ारवाद और भूमंडलीकरण के दबाव के कारण भाषा की गुणवत्ता और लोगों के मानसिक
बदलाव के बहाने अनावश्यक अंग्रेज़ी शब्दों का प्रयोग परिशिष्टों में भी हो रहा
है|जैसे: डायरेक्टर ,मूवीज़ ,यूज़ ,रिक्वेस्ट ,कॉन्फिडेंस ,नेचर और फ्लेवर आदि
शब्दों के बदले नर्देशक ,फिल्म प्रयोग ,आग्रह ,आत्मविश्वास ,प्रकृति और स्वाद शब्दों
का प्रयोग किया जा सकता है|तरक्क़ी के नाम पर अंग्रेज़ी शब्दों का बेवजह प्रयोग
निराशा की बात है|
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