Tuesday, October 4, 2016

भूमंडलीकरण का मनोरंजन उद्योग पर प्रभाव

मीडिया जिसके नाम से सभी प्रचित हैं| आज पूरी दुनिया में मीडिया का माया जाल है|सभी जीवित मनुष्य किसी न किसी प्रकार उस से जुड़े हुए हैं| इसका प्रभाव क्षेत्र बहुत व्यापक और शक्तिशाली है|समाजिक सरोकारों में इस की भूमिका बहुत अधिक है| यह लोगों के जीवन शैली में इस क़दर रच बस गया है कि उस से खुद को जुदा कर पाना असंभव सा लगता है| क़दम से क़दम मिलाकर और बाहों में  बाहें डालकर आज मीडिया हर किसी के दिल पर हुक्मरानी कर रहा है|हमारी पसंद और न पसंद मीडिया तय करता है|आज सभी ज़रूरतों का माध्यम इश्क़ व जुनून का रूप धारण कर चूका मीडिया से जुदा होने का अर्थ जिंदगी के साथ बेवफाई करना है|
मीडिया का क्षेत्र बहुत दूर तक फ़ैल चूका है|यह अपने माध्यमों के साथ समाज को सूचना, शिक्षा और मनोरंजन प्रदान करता है|मीडिया का मुख्य कार्य समाज को दुनिया के महत्वपूर्ण घटनाओं की जानकारी देना और उस के सकारात्मक और नकारात्मक प्रभावों से लोगों को अवगत कराना है|मीडिया समाज का मार्गदर्शक होता है|यह विचारों का आदान प्रदान करके स्वस्थ जनमत तैयार करता है| यह जनसंपर्क का बहुत सफल माध्यम है|बहुत से ऐसे कार्य हैं जिस की जिम्मेदारी मीडिया के ऊपर लागू होती है, जिसकी वजह से इसका वजूद संभव हुआ था| लेकिन सवाल यह है की क्या मीडिया अपनी जिम्मेदारी बखूबी और ईमानदारी के साथ निभा रहा है? क्या वह सामाजिक सरोकारों पर पूरी तरह से खरा उतरा है? या इसी के नाम पर वह समाज को उल्लू बना रहा है? निश्चय ही इसका जवाब होगा नहीं!!! बल्कि वह तो आज सामाजिक दायित्त्व का अर्थ ही भूल गया है, उसे हर जगह सिर्फ लाभ ही नज़र आता है| होना तो यह चाहिए था की वह समाज के ज़रूरतों के अनुसार काम करता और स्वस्थ समाज की निर्माण करता लेकिन मामला बिलकुल इस से उलट है|वह समाज को उस की जरूरतें बताता है और उसको लाभ कमाने का उद्योग समझता है| यहीं से उपभोक्ता संस्कृति का निर्माण करता है और देशी संस्कृति को बकवास कहकर उसे समाज के लिए हानिकारक क़रार देता है|यह तमाम चीजें भूमंडलीकरण का देन है|जिसने उदारीकरण और निजीकरण जैसे हत्कंडों के साथ जनसंचार को भी उद्योग बना कर उस का मुख्य लक्ष्य मुनाफा कमाना निर्धारित कर दिया है| नहीं तो कौन नहीं जानता कि स्वतंत्रता संग्राम में मीडिया की भूमिका किया थी? और मीडिया ने अपनी दायित्त्वों का कहाँ तक निर्वाह किया था? सच तो यह है की आज़ादी का मुख्य कारक  मीडिया ही था| एक वे मीडियाकर्मी थे जिन्होंने गुलामी से निजात दिलाया और एक आज के मीडियाकर्मी हैं जो गुलामी की ओर ढकेल रहे हैं|उद्योग का सफल अड्डा बन चूका मीडिया आज मनोरंजन के नाम पर और भूमंडलीकरण के दबाव में क्या कुछ कर रहा है और समाज को उनकी ज़रूरत और मांग के बहाने क्या कुछ परोस रहा है इस पर गौर करने की अधिक आवश्यकता है|मनोरंजन उद्योग पर भूमंडलीकरण के प्रभाव को समझने के लिए भूमंडलीकरण के भूल भुलैय्या से अवगत होना ज़रूरी मालूम होता है|





                           भूमंडलीकरण  

भूमंडलीकरण एक ऐसा जादू है जिसके प्रभाव से बच पाना बहुत मुश्किल है| इस के जादू का रक़बा इतना अधिक है कि इस के बाहर दुनिया का वजूद ही नज़र नहीं आता|यही वजह है की सूचना क्रांति के इस युग में कोई भी राष्ट्र या समाज भूमंडलीकरण के प्रक्रिया से अलग नहीं दिखता है|भूमंडलीकरण जिसे वैश्वीकरण भी कहा जाता है यह नवउदारवादी विचारधारा की दिमागी उपज है| पिछले तीन दशकों में मानव विकास की दिशा और दशा मैं बुनियादी परिवर्तन आये हैं । नवउदारवादी विचारधारा आज विश्व राजनीति के केंद्र में हैं । इसका आधार एक उपभोक्ता समाज और विश्व को एक बाज़ार में तब्दील कर देना है और एक ऐसे समाज का निर्माण है जिस पर व्यापार का प्रभुत्व हो| इस तरह की व्यवस्था कायम करने मैं मीडिया की केंद्रीय भूमिका है । अस्सी-नब्बे के दशक की कुछ घटनाओं ने राजनीतिक, आर्थिक और सूचना संचार की अंतर्राष्ट्रीय  व्यवस्थाओं को एक तरह से फिर से परिभाषित कर दिया जिससे विश्व राजनीति के चरित्र और स्वभाव में बड़े परिवर्तन आए। इसी दशक में सूचना क्रांति ने भी बेमिसाल ऊँचाइयां हासिल की|यहीं से भूमंडलीकरण ने सर उठाया और दोबारा कभी पीछे मुड़ कर नहीं देखा|
और फिर किया था भूमंडलीकरण से एक नए व्यापारिक मूल्यों और एक नयी उपभोक्ता संस्कृति का उदय हुआ। इन सबका जबरदस्त प्रभाव जनसंचार माध्यमों पर भी पड़ा। जनसंचार माध्यम काफी हद तक इस प्रक्रिया का हिस्सा बन गये और राजनीतिक और व्यापारिक हितों के अधीन होते चले गए। व्यापारीकरण की यह प्रक्रिया आज अपने चरम पर है। भले ही विभिन्न देशों और विभिन्न समाजों में इसका रूप-स्वरूप कितना ही भिन्न क्यों न हो।इसी का नतीजा है कि आज प्रिंट मीडिया से लेकर इलेक्ट्रॉनिक मीडिया के सफ़र पर नज़र डालें तो पता चलता है की टी.आर.पी. बढ़ाने और मुनाफा कमाने के लिए मीडिया किस क़दर अनैतिक होती जा रही है|यह तो कॉरपोरेट घराने को चलाने के लिए एक कामयाब उद्योग बन गया है जो हर समय हमें नई वस्तुओं और सेवाओं के प्रति आकर्षित करती नज़र आती है| हक़ीक़त में भूमंडलीकरण की मौजूदा प्रक्रिया एक ''टोटल पैकेज'' है जिसमें राजनीतिक, आर्थिक और संस्कृतिक तीनों ही पक्ष शामिल हैं। मीडिया नयी जीवन शैली और नये मूल्यों का इस तरह सृजन करता है जिससे नये उत्पादों की मांग पैदा की जा सके और एक बाजार का सृजन किया जा सके। अनेक अवसरों पर मीडिया ऐसे उत्पादों की भी मांग पैदा करता है जो स्वाभाविक और वास्तविक रूप से किसी समाज की मांग नहीं होते हैं| इसके लिए इन विचारधारकों को  मीडिया मनोरंजन माध्यम सबसे सफल और कामयाब जगह नज़र आया जिसको उद्योग की शक्ल देकर लाभ कमाने का ज़रिया बना लिया गया|








                               
                             मनोरंजन

मनोरंजित करना संचार माध्यमों का महत्त्वपूर्ण कार्य है| शुरू से ही मीडिया की समाजिक भूमिका में शिक्षा और सूचना के साथ- साथ मनोरंजन भी महत्त्वपूर्ण अंग रहा है|फिल्म और रेडियो  पिछले एक सदी से इस के सफल माध्यम रहे हैं| आज भी यह अपने कार्य में सफलता के साथ गतिशील हैं| रेडियो में शुरू से ही बहुत से ऐसे कार्यक्रम आते थे जिस के ज़रिये लोग अपने मानसिक और शारीरिक थकानों को तरोताज़ा करते थे| जैसे-जैसे वक़्त गुज़रता गया संचार माध्यमों में विस्तार होता रहा| साथ-साथ मनोरंजन भी अपना रूप बदलता रहा| दूरदर्शन आया उसने मनोरंजन को और गति प्रदान की| इसने लोगों को मनोरंजन का व्यापक साधन मुहैय्या कराया|विभिन्न कार्यक्रमों का निर्माण किया| सीरियल और फिल्म का भी प्रसारण होने लगा| भूमंडलीकरण का दौर आया तो संचार माध्यमों में क्रांतिकारी बदलाव आया और मनोरंजन माध्यमों का अंबार सा लग गया|
         
                                मनोरंजन उद्योग

भूमंडलीकरण बाज़ारवाद का दूसरा नाम है| इसके प्रभाव का अंदाज़ा हम सभी को है| हम जो कुछ भी आज उपभोग कर रहे हैं वह भूमंडलीकरण के द्वारा ही संभव हुआ है| यह अलग बहस है कि इसका सकारात्मक और नकारात्मक प्रभाव किया है? 1991 के बाद चली इस आंधी के चपेट से सूचना माध्यम भी न बच सके| अगर जनसंचार माध्यमों में क्रांतकारी बदलाव आया तो इस का असर उस के कंटेंट पर भी पड़ा| मीडिया की प्रस्तुति का अंदाज़ ही बदल गया| लाभ प्राथमिक उद्देश्य बन गया, समाज और उसके सरोकार लाभ के तले दब कर रह गए| कॉरपोरेट घरानों का तेज़ी के साथ मीडिया में दखल बढ़ा| मीडिया भी उद्योग बन गया| मनुष्य के मानसिकता का फायदा उठाते हुए मनोरंजन के क्षेत्र में ज्यादा से ज्यादा निवेश किया गया| फिर किया था मनोरंजन उद्योग सबसे मुनाफे का माध्यम बन गया|आज मीडिया और मनोरंजन उद्योग का तेजी से विस्तार इसी उपभोक्ता क्रांति के बल पर हो रहा है| और फिर  मीडिया के व्यापारीकरण का नया दौर शुरू हुआ जिसकी गति और आकार अपने आप में बेमिसाल थी। इस दौर में मीडिया व्यापार की ओर अधिकाधिक झुकता चला गया और सार्वजनिक हित की पूर्ति करने की इसकी भूमिका न के बराबर रह गई। मीडिया अब सार्वजनिक-व्यापारिक माध्यम से हटकर व्यापारिक-सार्वजनिक माध्यम बन गया जिसे व्यापारिक हित ही संचालित करतें हैं । आज मीडिया के व्यापारीकरण की यह प्रक्रिया अपने चरम पर है।

                मनोरंजन उद्योग और भूमंडलीकरण

भूमंडलीकरण से मीडिया और मनोरंजन उद्योग पर जो प्रभाव पड़ा है उस के खिलाफ आये दिन हमें दबी-दबी ही सही लेकिन ऐसी आवाजें ज़रूर कानों से हो कर गुज़रती हैं| भले ही उस पर किसी का ध्यान न जाता हो| अगर फिल्म की बात करें तो लाभ हासिल करने के चक्कर में अश्लीलता को ही आर्ट समझा जाने लगा है| कहानी और समस्सया क्या है? उस को फिल्म में ईमानदारी के साथ फिल्माया गया है या नहीं? इस का प्रभाव क्या होगा? ऐसे प्रश्न बे बाना हो कर रह गए हैं| क्योंकि मनोरंजन उद्योग का सीधा सा फण्डा है की पहले इसी मीडिया के द्वारा समाज की मानसिकता को बदलो फिर समाज की ज़रूरत के बहाने जो चाहो परोस दो| सनी लीओन का फिल्म जगत में आना और बे शुमार इज्ज़त पाना और फिर ऐसी फ़िल्में देना जो भारतीय समाज और संस्कृति को आसानी से हज़म न हो, इसका ताज़ा उदहारण है| बड़े मियां तो बड़े मियां छोटे मियां भी इस फिल्ड में पीछे नज़र नहीं आ रहे हैं| मेरी मुराद सेरिअल्स से है कि आज वह भी टी.आर.पी. के चक्कर में कुछ भी करने को तैयार है| आज के सीरियलों में समाज तो कहीं नज़र नहीं आता बल्कि फालतू और बे मतलब द्रश्यों का निर्माण कर सिर्फ उपभोक्ता को इकठ्ठा करने और विज्ञापनों के ज़रिये लाभ कमाना ही एक उद्देश्य भर रह गया है| मनोरंजन के नाम पर भारतीय समाज में “बिग बॉस” जैसों कार्यक्रमों का निर्माण मीडिया का मुनाफा कमाना ही एक उदेश्य रह गया है का बेहतरीन उदाहरण है| भूमंडलीकरण के इस दौर में ब्रांड मुनाफे कमाने का सबसे बड़ा हथियार है| आज कोई भी फिल्म या कार्यक्रम हो ब्रांड पर चलती है| सेलेब्रिटी संस्कृति अपने चरम पर है| शाहरुख़ खान, आमिर और  सलमान खान आदि का किसी भी फिल्म और कार्यक्रम में मौजूद होना ही उसकी कामयाबी के लिए काफी है| फिल्म में चाहे कुछ भी न हो रिकॉर्ड कमाई करना तय होता है| चुनाव को भी सेलेब्रिटी के नाम पर मनोरंजक  बना दिया गया है| आज चुनाव जीतने का यह बहुत सहायक हथियार है| मोदी को ब्रांड बनाकर बीजेपी कैसे सत्ता में आ गई, इस को ब्रांड बनाने में मीडिया की भूमिका और इस से मीडिया का मुनाफा इसी आंकड़े से स्पष्ट हो जाता है जिसमें बी.बी.सी. के अनुसार बीजेपी ने अपने चुनाव प्रचार के लिए 35000 करोड़ रु. सिर्फ प्रचार प्रसार में खर्च कर दिए| मीडिया और मनोरंजन उद्योग में आज सिर्फ ब्रांड का खेल है| के.बी.सी. अमिताभ बच्चन, बिग बॉस सलमान खान और सत्यमे ज्य्ते आमिर खान के नाम पर चलता है|
बाजारवाद विचारधारा के चलते मीडिया सामाजिक दायित्त्व को भूलता जा रहा है| मुनाफा के चक्कर में सब कुछ मनोरंजक बना दिया गया है| समाचार जो की मीडिया का सबसे महत्त्वपूर्ण अंग है उसको भी मनोरंजन में तब्दील कर दिया गया है| बाजार को हथियाने की होड़ में 'इन्फोटेनमेंट' नाम के नये मीडिया उत्पाद का जन्म हुआ है जिसमें सूचना के स्थान पर मनोरंजन को प्राथमिकता मिलती है। इसके तहत सूचना को बहुत हल्का और मनोरंजक बना दिया जाता है। मनोरंजन से अधिक लोगों को प्रभावित किया जा सकता है लेकिन अत्यधिक मनोरंजन से सूचना के तत्त्व खत्म हो जाते हैं| ओर इस प्रक्रिया में मीडिया लोगों को सूचना देने के बजाए उन्हें लुभाकर विज्ञापनदाताओं के हवाले करता है ।अनेक अवसरों पर इस तरह के समाचार और समाचार कार्यक्रम पेश किये जाते है कि वे लोगों का ध्यान खींच सकें भले ही साख और विश्वसनीयता के स्तर पर वे कार्यक्रम खरे न उतरते हों। क्योंकि मीडिया तंत्र पर उन वैश्विक ताकतों का नियंत्रण है जो अपने व्यापारिक एजेंडा थोपने के लिए राजनीतिक, सामाजिक और संस्कृतिक जीवन के हर पक्ष का मनोरंजनीकरण कर रहे हैं। आज विज्ञानं से लेकर खेल तक हर चीज मनोरंजन है|
इसके साथ ही 'पॉलिटिकॉटेनमेंट' की अवधारणा का भी उदय हुआ है जिसमें राजनीति और राजनीतिक जीवन पर मनोरंजन उद्योग हावी हो रहा है। राजनीति की व्याखया और प्रस्तुतीकरण पर मनोरंजन के तत्व हावी होते चले जा रहे हैं। कई मौकों पर बडे राजनीतिक विषयों को सतही रूप से और तमाशे के रूप में पेश किया जाता है और आलोचनात्मक होने का आभास भर पैदा कर वास्तविक आलोचना किनारे कर दी जाती है। कई अवसरों पर टेलीविजन के परदे पर राजनीतिज्ञों की बहसों का मूल्यांकन करें तो यह तमाशा ही अधिक नजर आता है। इन बहसों में वास्तविक विषयों और विभिन्न राष्ट्रीय परिप्रेक्ष्य नदारद रहते हैं। इस तरह के कार्यक्रम बुनियादी राजनीति मतदभेदों के स्थान पर तू तू-मैं मैं के मनोरंजन की ओर ही अधिक झुके होते हैं। इससे अनेक बुनियादी सवाल पैदा होते हैं|
एफ.एम. मनोरंजन का सबसे सस्ता और सुलभ माध्यम है| यह बहुत आसानी के साथ दस्तियाब हो जाता है| आज तो यह किसी न किसी रूप में हर व्यक्ति के पास उपलब्ध है| भूमंडलीकरण के प्रभाव से यह भी दूर नहीं है| मनोरंजन का यह बहुत बड़ा उद्योग है| इसका अंदाज़ा इस बात से लगाया जा सकता है कि एफ.एम. रेडियो के विज्ञापन के रेट 25% तक बढ़ने की उम्मीद है| मीडिया की मार्किट विज्ञापन है इस लिए विज्ञापन के लालच में मनोरंजन के नाम पर आज एफ.एम. क्या परोस रहा है? किस प्रकार की भाषा का प्रयोग कर रहा है? यह बताने की आवश्यकता नहीं है क्योंकि हम सभी उस के उपभोक्ता हैं|
मनोरंजन उद्योग ने तो खेल को भी कहीं का न छोड़ा| खेल जो कि हर दौर में मनोरंजन का सफल और कामयाब साधन रहा है| हर समाज और संस्कृति में कोई न कोई खेल अपने रूप में मौजूद रहा है और आज भी मौजूद है| लेकिन उद्योगपतियों ने इस को भी उद्योग बना दिया है| इस का सबसे महत्वपूर्ण उदहारण इंडियन प्रीमियर लीग है| दिन ब दिन सभी खेल इस के चपेट में आ रहे हैं| यहाँ भी सेलेब्रिटी संस्कृति सबसे आगे नज़र आती आती है|


                मनोरंजन उद्योग का आज और भविष्य

मनोरंजन उद्योग आज अपने चरम सीमा पर है और आगे भी इस का भविष्य उज्ज्वल नज़र आता है| यही वजह है की कॉरपोरेट घरानों का निवेश मीडिया और खास तौर से मनोरंजन के क्षेत्र में लगातार बढ़ रहा है| फिक्की-केपीएमजी पिछले तीन साल से अपनी वार्षिक रिपोर्ट में बताते आए हैं कि मीडिया- खासकर समाचार चैनल- किसी भी लिहाज से फायदे का धंधा नहीं रह गया है। हां इससे ठीक उलट मनोरंजन चैनलों का कारोबार ज्यादा फायदेमंद है।मनोरंजन उद्योग का भविष्य क्या है? और इसने अपना वर्चस्व कहाँ तक बना लिया है? इस का अंदाज़ा इस रिपोर्ट से बखूबी हो जायेगा|
फिक्की-केपीएमजी ने “मनोरंजन व व्यापार सम्मेलन फिक्की फ्रेम्स 2011  के रिपोर्ट में मीडिया क्षेत्र में बढ़ते कारोबार और विज्ञापन खर्च में तेजी से आते सुधार के बाद भारतीय मीडिया और मनोरंजन उद्योग की औसत सालाना वृद्धि 14 प्रतिशत रहने का अनुमान लगाया था| अनुमान के मुताबिक साल 2015 तक वर्तमान 83 अरब रुपये का मनोरंजन उद्योग 132 अरब रुपये का हो जाएगा. समीक्षाधीन साल के दौरान इस उद्योग में फिल्मों को छोड़कर अन्य क्षेत्रों में अच्छी वृद्धि हुई है. वर्ष 2010 में विज्ञापन पर होने वाले खर्च में 17 प्रतिशत की वृद्धि हुई और यह 266 अरब रुपये हो गया, जो उद्योग के कुल कारोबार का 41 प्रतिशत है.

न्यू मीडिया (ऑनलाइन) का महत्व भी तेजी से बढ़ा है. इस उद्योग में वर्ष 2010 में हुई वृद्धि का मुख्य कारण विज्ञापन क्षेत्र में विकास होना, ग्राहकी शुल्क राजस्व का बढ़ना, डिजटलीकरण के लिए आकर्षण बढ़ना और सामग्री के मुद्रीकरण के लिए अवसरों का बढ़ना है. इसको देखते हुए अनुमान है कि वर्ष 2011 के दौरान इस उद्योग में 13 प्रतिशत की दर से वृद्धि होगी. साल 2015 तक इसे 1,275 अरब रुपये का उद्योग बनने के लिए 14 प्रतिशत की चक्रवृद्धि वार्षिक वृद्धि दर हासिल करनी होगी.

रिपोर्ट के मुताबिक, देश के प्रिंट मीडिया क्षेत्र में वर्ष 2010 के दौरान 10 प्रतिशत की वृद्धि दर्ज की गई. अगले पांच साल तक इस वृद्धि के ऐसे ही जारी रहने का अनुमान है. रिपोर्ट में कहा गया है कि वर्ष 2015 तक टीवी विज्ञापन से होने वाली आमदनी बढ़कर 214 अरब रुपये और ग्राहकों से होने वाली आमदनी 416 अरब रुपये पहुंचने की उम्मीद है.

अगर ये अनुमान सही होते हैं तो कहना चाहिए कि भारतीय मीडिया और मनोरंजन उद्योग का भविष्य काफी उज्जवल है. मीडिया और मनोरंजन उद्योग रोजगार और राजस्व के एक बड़े स्रोत के रूप में आगे आ रहे हैं और दिनों-दिन इनकी भागीदारी और महत्व में बढ़ोत्तरी ही होनी है.


 


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