भूमिका
आज हम जिस युग में हैं उसको सूचनाक्रांति युग कहा जाता है|जनसंचार अपने
माध्यमों के द्वारा गतिशीलता के उच्च पायदान पर विकासशील है|आज जीवन का दूसरा नाम
मीडिया हो गया है|वह हमारी संस्कृति, सभ्यता और रहन-सहन में इस प्रकार रच-बस गया
है कि उस से दूर होने का मतलब सांसों का बंद हो जाना है|मीडिया जिस का काम सूचना
का आदान प्रदान करना और लोगों को शिक्षित और मनोरंजित करना है|इस क्रांतकारी बदलाव
के बावजूद मीडिया अपने कार्य और जिम्मेदारी को भूला नहीं है बल्कि उसने अपने तर्ज़
और माध्यम को बदला है|फ़र्क़ सिर्फ इतना है कि आज मीडिया ने परम्परागत पद्धति के
साथ साथ कुछ नए माध्यमों को अपनाया है जिसके कारण जनसंचार की परिभाषा बदली है|यही
वजह है की आज उसे मीडिया नहीं बल्कि न्यू मीडिया कहा जा रहा है|और जिस तेज़ी के साथ
यह सुपरिचित, सुप्रचालित और निरंतर विकास की तरफ अग्रसर है शायद कुछ सालों बाद वह
न्यू मीडिया भी ना रहे बल्कि उसका रूप, नाम और परिभाषा भी बदल जाए|
भारत वासियों के लिए अभी भी यह एक नई कहानी से ज्यादा और कुछ नहीं है|आज भी
मीडिया से ताल्लुकात रखने वाले लोग इसकी किताबी और व्यावहारिक गुत्थियों में उलझे
हुए हैं|लेकिन भारत का बहुत बड़ा तबका आज एक ऐसे मोड़ पर आके खड़ा है जहाँ से न्यू
मीडिया का द्वार खुलता है|
न्यू मीडिया का सफ़र
बीसवीं सदी में जनसंचार को नया परिचय मिला जिसमें रेडियो, पत्र-पत्रिका,
टेलीविज़न न सिर्फ मनोरंजन और ज्ञानवर्धन का साधन बना बल्कि इसने ही भारत के
जनसंचार के ढांचे को खड़ा किया|आज़ादी का ताना-बाना जिस माध्यम से तैयार हुआ उसमें
तात्कालीन प्रिंट मीडिया की काफी महत्वपूर्ण भूमिका रही|आज़ादी के बाद संविधान,
विधायिका, कार्यपालिका और न्यायपालिका के साथ-साथ मीडिया भी लोकतंत्र का चौथा
स्तंभ बनकर उसका मज़बूत आधार बना|जैसे-जैसे भारत का लोकतंत्र जवान होता गया वैसे-वैसे
मीडिया भी मज़बूत होता रहा|बीसवीं शताब्दी के अंतिम दशक में वैश्वीकरण, निजीकरण और
भूमंडलीकरण का दौर शुरू होता है|भारत भी इसके प्रभाव से अछूता नहीं रहा बल्कि इसी
कारणवश संचार माध्यमों में ज़बरदस्त बदलाव आया फिर वह संचार क्रांति कहलाया|कंम्प्यूटर
और इंटरनेट ने भारत को दुनिया से जोड़ दिया|देखते ही देखते भारत ग्लोबल हो गया|
आज इक्कीसवी शताब्दी में भारत दुनिया के अधिकतर संचार तकनीकों से युक्त
है|दुनिया का सबसे बड़ा मोबाइल उपभोक्ता भारत में है|आज भारत के ग्रामीण अंचलों को
भी इन्टरनेट से जोड़ा जा रहा है|इन सबकी वजह न्यू मीडिया है|इसका दायरा सीमित नहीं
है|ब्लॉग से लेकर न्यूज़ पोर्टल तक और फेसबुक से लेकर गूगल हैंग आउट तक सब न्यू
मीडिया का ही स्वरूप है|भारत के किसी गाँव से अमेरिका के किसी गाँव को जोड़ने का
काम जिस माध्यम के द्वारा संभव हुआ उसी को हम आज न्यू मीडिया के नाम से जानते
हैं|न्यू मीडिया ने हमें सिर्फ आपस में जुड़ने का सुविधा मात्र नहीं दिया बल्कि
अपने व्यपार, राजनीती और संस्कृति आदि को दुनिया के कोने-कोने तक पहुँचाने का भी
साधन बना|
1980 में जब कंप्यूटर ने काली स्क्रीन से आगे चित्रात्मक स्क्रीन की ओर कदम
बढ़ाया तब न्यू मीडिया का उभार शुरू हुआ|इसके अगले दशक में शिक्षा और मनोरंजन के
लिए कॉम्पैक्ट डिस्क (CD) की लोकप्रियता का दौर आया तो न्यू मीडिया को मजबूती से पाँव जमाने का
मौक़ा मिला|फिर 1995 के बाद इन्टरनेट के प्रसार के साथ-साथ न्यू मीडिया का स्वर्ण
युग शुरू हुआ जो आज भी जारी है|
न्यू
मीडिया की परिभाषा
न्यू मीडिया की परिभाषा को लेकर भ्रम की स्थिति निरंतर कायम है। अधिकांश
लोग न्यू मीडिया का अर्थ इंटरनेट के ज़रिए होने वाली पत्रकारिता से लगाते हैं।
लेकिन न्यू मीडिया समाचारों,
लेखों, सृजनात्मक लेखन या पत्रकारिता तक सीमित
नहीं है। वास्तव में न्यू मीडिया की परिभाषा पारंपरिक मीडिया की तर्ज पर दी ही
नहीं जा सकती। न सिर्फ समाचार पत्रों की वेबसाइटें और पोर्टल न्यू मीडिया के दायरे
में आते हैं बल्कि नौकरी ढूंढने वाली वेबसाइट, रिश्ते तलाशने वाले पोर्टल, ब्लॉग,
स्ट्रीमिंग ऑडियो−वीडियो, ईमेल, चैटिंग,
इंटरनेट−फोन, इंटरनेट पर होने वाली खरीददारी, नीलामी, फिल्मों की सीडी−डीवीडी, डिजिटल कैमरे से लिए फोटोग्राफ, इंटरनेट सर्वेक्षण, इंटरनेट आधारित चर्चा के मंच, दोस्त बनाने वाली वेबसाइटें और सॉफ्टवेयर
तक न्यू मीडिया का हिस्सा हैं|न्यू मीडिया वास्तव में परम्परागत मीडिया का संशोधित
रूप है|न्यू मीडिया संचार का वह संवादात्मक स्वरूप है जिसमें इन्टरनेट का उपयोग
करते हुए लोगों से संवाद स्थापित करते हैं|
न्यू मीडिया स्वरूप
न्यू मीडिया अपने स्वरूप, आकर और संयोजन में मीडिया के पारंपरिक रूपों से
भिन्न है|और उनकी तुलना में काफी व्यापक है|पारंपरिक मीडिया एक से अनेक मॉडल पर
आधारित है जबकि न्यू मीडिया अनेक से अनेक के मॉडल पर आधारित है|
यह एक डिजिटल माध्यम है|इस लिए
इसके प्रयोग के लिए किसी न किसी तरह के
कंप्यूटिंग माध्यम की ज़रूरत पड़ती है। ज़रूरी नहीं कि वह माध्यम कंप्यूटर ही हो।
वह किसी भी किस्म की इलेक्ट्रॉनिक या डिजिटल युक्ति हो सकती है जिसमें आंकिक
गणनाओं या प्रोसेसिंग की क्षमता मौजूद हो, जैसे कि मोबाइल फोन, पर्सनल डिजिटल असिस्टेंट (पीडीए), आई−पोड, ज़ून,
सोनी पीएसपी, ई−बुक रीडर जैसे माध्यम आदि|
न्यू मीडिया के यूं तो अनगिनत स्वरूप हो
सकते हैं, लेकिन उसके कुछ अधिक प्रचलित और लोकप्रिय
रूप इस प्रकार हैं|
·
सभी प्रकार की वेबसाइटें (सिर्फ समाचार आधारित नहीं),
ब्लॉग और पोर्टल।
·
ई−समाचार पत्र, ई−पत्रिकाएं आदि।
·
ओरकुट, बिग अड्डा, राइज, माईस्पेस और फेसबुक जैसी सोशल नेटवर्किंग सेवाएं।
·
ईमेल, चैट और इन्स्टैंट मैसेजिंग
·
वाइस ओवर इंटरनेट के जरिए होने वाले टेलीफोन कॉल
·
मोबाइल फोन में रिसीव होने वाली सामग्री (एसएमएस,
एमएमएस, फोटो, ऑडियो, वीडियो, अलर्ट आदि)
·
मोबाइल टेलीविजन, मोबाइल गेम
·
ऑनलाइन
समुदाय और न्यूजग्रुप, फोरम आदि
·
सीडी−रोम,
डीवीडी और ब्लू रे डिस्कों पर अंकित सामग्री
(मल्टीमीडिया, वीडियो, ऑडियो, एनीमेशन आदि)
·
डिजिटल कैमरों से लिए जाने वाले चित्र
·
एमपी− 3 प्लेयरों में सुना जाने वाला संगीत
·
वेब आधारित विज्ञापन
·
वर्चुअल रियलिटी (काल्पनिक दुनिया) आधारित अनुप्रयोग,
जैसे− सैकंड लाइफ,
कंप्यूटर गेम आदि।
·
यूजर जेनरेटेड कॉन्टेंट (उपयोक्ताओं द्वारा दी गई सामग्री)
पर आधारित अनुप्रयोग, जैसे यू−ट्यूब, फ्लिकर, विकीपीडिया, सिटीजन जर्निलज्म आदि।
·
ई−बैंकिंग, ई−कॉमर्स, एटीएम, ई−शॉपिंग आदि।
·
ई−प्रशासन आधारित सुविधाएं और सेवाएं।
·
कंप्यूटर सॉफ्टवेयर, डाउनलोड सेवाएं आदि।
·
सेवाओं और सामग्री का वितरण करने वाले इलेक्ट्रॉनिक कियोस्क
·
इंटरएक्टिव टेलीविजन (डीटीएच आधारित)
·
कंप्यूटर ग्राफिक्स और ग्राफिकल यूजर इंटरफेस।
·
ऑनलाइन
शिक्षा और मार्केटिंग आदि।
न्यू मीडिया का पक्ष और विपक्ष
हम ने देखा और जाना की न्यू मीडिया का फैलाव और वर्चस्व हमारे निजी ज़िन्दगी के
भीतर कहाँ तक है|न्यू मीडिया इतनी बड़ी क्रांति का रूप धारण कर चुका है की आज
हमारे जीवन के हर एक गतिविधियों के साथ-साथ बगलगीर होकर और क़दम से क़दम मिलाकर
अग्रसर है|इस लिए उस से प्रभावित होना तय है|अब ये अलग तथ्य है की उस का प्रभाव
नकारात्मक है या सकारात्मक|क्योंकि इन दोनों चीज़ों का हर माध्यम में पाया जाना
अनिवार्य है|ये तो उस के यूजर पर निर्भर करता है कि वह उसका प्रयोग किस प्रकार कर
रहा है|ऐसा ही कुछ मामला न्यू मीडिया का भी है|चूँकि समाज पर इसके प्रभाव का तो
कोई जवाब ही नहीं है इसलिए इसके सकारात्मक और नकारात्मक प्रभाव का होना वाजिब
मालूम होता है|न्यू मीडिया में सबसे प्रभावशाली माध्यम सोशल नेटवर्किंग के रूप में
उभर कर सामने आया है|आज फेसबुक और ट्विटर के बारे में कौन नहीं जानता है|छोटे से
छोटे मोबाइल फ़ोन में फेसबुक, ट्विटर, whatsup, youtube, google, सभी कुछ आसनी के
साथ दस्तयाब है|इन सब माध्यमों ने आज समाज पर क्रांतकारी प्रभाव डाला है| इन्होंने
आकर सरहदी हदबंदी को ही खतम कर दिया है यही वजह है की यह बहुत से देशों के लिए
परेशानी का सबब बनता जा रहा है|जहाँ इन्हों ने पूरी दुनिया को लाकर एक मोबाइल में
बंद कर दिया है और लोगों को दूर रहकर भी पास रहने और २४ घंटे संवाद स्थापित करने
का मौक़ा दिया है तो वहीँ पर इस में किसी भी देश और समुदाय में क्रांति फ़ैलाने और
एक ही जगह बैठ कर एक मोबाइल फ़ोन द्वारा किसी भी राजनीती को उलट पलट करने की क्षमता
भी मौजूद है|अन्ना आन्दोलन, आम आदमी पार्टी की कामयाबी और हाल में हुए लोकसभा और
विधान सभा इलेक्शन में इस के नकारात्मक और सकारात्मक प्रभाव को सामने रखकर इस की
शक्ति को आँका जा सकता है|एक बात साफ है की इसका अधिकतर उपभोक्ता युवा वर्ग है|
न्यू मीडिया और युवा
जनसंचार माध्यमों में हाल ही कुछ वर्षों में एक क्रांति का उदय हुआ है
जिससे न्यू मीडिया का व्यापक रूप उभर कर
सामने आया है| जिसने मॉर्सल मैक्लुहान के वक्तव्य को पूर्णतः सत्य कर दिया कि
संपूर्ण दुनिया एक गांव में तब्दील हो जाएगी। मनुष्य के बोलने का अंदाज बदल जाएगा
और क्रिया-कलाप भी। ऐसा ही हुआ है, आज युवा रेडियों सुन रहा है,
टेलीविजन देख रहा है,
मोबाइल से बात कर रहा है और अंगुलियों से
कंम्प्यूटर चला रहा है। कहने का मतलब यह है कि युवा एक साथ कई तकनीकों से संचार कर
रहा है। जनसंचार माध्यमों का युवा वर्ग पर पड़ने वाले प्रभावों के संदर्भ में बाते
करें तो इसके भी दो रूप दिखाई पड़ते हैं-
सकारात्मक और नकारात्मक।
अब मुख्य प्रश्न यह उठता है कि आज की युवा पीढ़ी जनसंचार माध्यमों के किस पहलू पर अधिक अग्रसरित हो रही है। सकारात्मक पहलू पर या नकारात्मक पहलू पर।युवाओं पर मीडिया का प्रभाव मौजूदा आंकड़ों के मुताबिक कहें तो देश की तकरीबन 58 फीसदी आबादी युवाओं की है। ये वो वर्ग है जो सबसे ज्यादा सपने देखता है और उन सपनों को पूरा करने के लिए जी-जान लगाता है। मीडिया इन युवाओं को सपने दिखाने से लेकर इन्हें निखारने तक में अहम भूमिका निभाने का काम करता है। अखबार-पत्र-पत्रिकाएं जहां युवाओं को जानकारी मुहैया कराने का दायित्व निभा रहे हैं, वहीं टेलीविजन-रेडियो-सिनेमा उन्हें मनोरंजन के साथ आधुनिक जीवन जीने का सलीका सिखा रहे हैं। लेकिन युवाओं पर सबसे ज्यादा और अहम असर हो रहा है न्यू- मीडिया का। जी हां, इंटरनेट से लेकर तीसरी पीढ़ी (थ्री-जी) मोबाइल तक का असर यूं है कि देश-दुनिया की सरहदों का मतलब इन युवाओं के लिए खत्म हो गया है। इनके सपनों की उड़ान को तकनीक ने मानों पंख लगा दिए हैं। ब्लॉगिंग के जरिए जहां ये युवा अपनी समझ-ज्ञान-पिपासा-जिज्ञासा-कौतूहल-भड़ास निकालने का काम कर रहे हैं। वहीं सोशल मीडिया साइट्स के जरिए दुनिया भर में अपनी समान मानसिकता वालों लोगों को जोड़ कर सामाजिक सरोकार-दायित्व को पूरी तन्मयता से पूरी कर रहे हैं। हाल में अरब देशों में आई क्रांति इसका सबसे तरोताजा उदाहरण है। इन आंदोलनों के जरिए युवाओं ने सामाजिक बदलाव में अपनी भूमिका का लोहा मनवाया तो युवाओं के जरिए मीडिया का भी दम पूरी दुनिया ने देखा। युवाओं पर इसका अधिक प्रभाव इसलिए पड़ा क्योंकि वे उपभोक्तावादी प्रवृति के होते हैं। वे बिना किसी हिचकिचाहट के किसी भी नई तकनीक का उपभोग करना शुरू कर देते हैं।
यह कहना गलत नहीं होगा कि दूसरी ओर युवा वर्ग जनसंचार की चमक के माया जाल में फंसता जा रहा है। आज युवाओं में तेजी से पनप रहे मनोविकारों, दिशाहीनता को न्यू मीडिया से जोड़कर देखा जा सकता है। पश्चिम का अंधा अनुसरण करने की चाहत उन्हें आधुनिकता का पर्याय लगने लगी है। इनसे युवाओं की पूरी जीवन-शैली प्रभावित दिखलाई पड़ रही है जिससे रहन-सहन, खान-पान, वेषभूषा और बोलचाल सभी समग्र रूप से शामिल है। शराब और धूम्रपान उन्हें एक फैशन का ढंग लगने लगा है। नैतिक मूल्यों के हनन में ये कारण मुख्य रूप से उत्तरदायी है। आपसी रिश्ते-नातों में बढ़ती दूरियां और परिवारों में बिखराव की स्थिति इसके दुखदायी परिणाम हैं।
अगर आंकड़ों पर गौर करें तो 30 जून, 2012 तक भारत में फेसबुक व सोशल साइटों के उपयोग करने वालों की संख्या लगभग 5.9 करोड़ है जो 2010 की तुलना में 84 प्रतिशत अधिक है। इन 5.9 करोड़ लोगों में लगभग 4.7 करोड़ युवा वर्ग से सरोकार रखते हैं। अगर आंकड़ों को देखें तो भारत दुनिया का चैथा सबसे अधिक फेसबुक का इस्तेमाल करने वाला देश बन गया है। इसमें दो राय नहीं कि डिजिटल क्रांति ने युवाओं की निजता को प्रभावित किया है और युवा अपनी सोच से अपने समाज को प्रभावित कर रहे हैं।
वहीं इंडिया बिजनेस न्यूज एंड रिसर्च सर्विसेज द्वारा 1200 लोगों पर किए गए सर्वेक्षण जिनमें 18-35 साल की उम्र के लोगों को शामिल किया गया था। इसमें करीब 76 फीसदी युवाओं ने माना कि सोशल मीडिया उनको दुनिया में परिवर्तन लाने के लिए समर्थ बना रही है। उनका मानना है कि महिलाओं के हित तथा भ्रष्टावचार विरोधी आंदोलन में ये सूचना का एक महत्वपूर्ण स्रोत साबित हुई है। करीब 24 फीसदी युवाओं ने अपनी सूचना का स्रोत सोशल मीडिया को बताया। करीब 70 फीसद युवाओं ने ये भी माना कि किसी समूह विशेष से संबद्ध हो जाने भर से जमीनी हकीकत नहीं बदल जाएगी, बल्कि इसके लिए बहुत कुछ किए जाने की जरूरत है।
वास्तव में न्यू मीडिया ने ग्लोबल विलेज की अवधारणा को जन्म दिया है।इसके के अंतर्गत आने वाले माध्यमों ने युवा वर्ग पर अपना व्यापक प्रभाव छोड़ा है। इनका प्रभाव इतना शक्तिशाली है की आज के युवा इन माध्यमों के बिना अपने दिन की शुरुआत ही नहीं कर सकते। मोबाइल यह एक ऐसा माध्यम है जिससे दूर बैठे व्यक्ति के साथ बात की जा सकती है तथा अपने हसीन पलों को चलचित्रों के रूप में कैद किया जा सकता है। यह तो इसका सदुपयोग है परंतु आज युवा इस माध्यम का गलत प्रयोग कर एमएमएस बनाते हैं। इसी प्रकार इंटरनेट जनसंचार माध्यमों में सबसे प्रभावशाली है जिसने दूरियों को कम कर दिया है। इसका अधिकतर उपभोग युवा वर्ग द्वारा किया जाता है जहां इसके द्वारा युवाओं को सभी जानकारियां उपलब्ध होती हैं। ये ज्ञानवर्धन में तो सहायक है परंतु आज वर्तमान समय में युवा द्वारा इसका दुरूपयोग अधिक होता है। हालांकि संस्कारी व्यक्तियों द्वारा इस मीडिया का सही उपयोग किया जा रहा है वहीं लगभग 100 में से 85 प्रतिशत लोग पोर्न साइटों का प्रयोग करते हैं और हैंरतअंगेंज करने वाली बात है कि सर्वाधिक विजिटर भी इन पोर्न साइटों के ही हैं। इन अश्लील साइटों पर जाकर वे अपनी मन को शांत करते हैं। परंतु वे यह नहीं जानते कि इससे उनका और समाज दोनों का नैतिक पतन होता है। साथ ही इंटरनेट के अधिक उपयोग ने साइबर क्राइम जैसे अपराधों को जन्म देकर युवाओं में अपराध करने का न्य रास्ता उत्पन्न कर दिया है। जिससे आज का युवा वर्ग मानसिक, शारीरिक और आर्थिक पतन की ओर अग्रसरित हो रहा है। जो हमारे समाज के लिए चिंता का विषय है।
अब मुख्य प्रश्न यह उठता है कि आज की युवा पीढ़ी जनसंचार माध्यमों के किस पहलू पर अधिक अग्रसरित हो रही है। सकारात्मक पहलू पर या नकारात्मक पहलू पर।युवाओं पर मीडिया का प्रभाव मौजूदा आंकड़ों के मुताबिक कहें तो देश की तकरीबन 58 फीसदी आबादी युवाओं की है। ये वो वर्ग है जो सबसे ज्यादा सपने देखता है और उन सपनों को पूरा करने के लिए जी-जान लगाता है। मीडिया इन युवाओं को सपने दिखाने से लेकर इन्हें निखारने तक में अहम भूमिका निभाने का काम करता है। अखबार-पत्र-पत्रिकाएं जहां युवाओं को जानकारी मुहैया कराने का दायित्व निभा रहे हैं, वहीं टेलीविजन-रेडियो-सिनेमा उन्हें मनोरंजन के साथ आधुनिक जीवन जीने का सलीका सिखा रहे हैं। लेकिन युवाओं पर सबसे ज्यादा और अहम असर हो रहा है न्यू- मीडिया का। जी हां, इंटरनेट से लेकर तीसरी पीढ़ी (थ्री-जी) मोबाइल तक का असर यूं है कि देश-दुनिया की सरहदों का मतलब इन युवाओं के लिए खत्म हो गया है। इनके सपनों की उड़ान को तकनीक ने मानों पंख लगा दिए हैं। ब्लॉगिंग के जरिए जहां ये युवा अपनी समझ-ज्ञान-पिपासा-जिज्ञासा-कौतूहल-भड़ास निकालने का काम कर रहे हैं। वहीं सोशल मीडिया साइट्स के जरिए दुनिया भर में अपनी समान मानसिकता वालों लोगों को जोड़ कर सामाजिक सरोकार-दायित्व को पूरी तन्मयता से पूरी कर रहे हैं। हाल में अरब देशों में आई क्रांति इसका सबसे तरोताजा उदाहरण है। इन आंदोलनों के जरिए युवाओं ने सामाजिक बदलाव में अपनी भूमिका का लोहा मनवाया तो युवाओं के जरिए मीडिया का भी दम पूरी दुनिया ने देखा। युवाओं पर इसका अधिक प्रभाव इसलिए पड़ा क्योंकि वे उपभोक्तावादी प्रवृति के होते हैं। वे बिना किसी हिचकिचाहट के किसी भी नई तकनीक का उपभोग करना शुरू कर देते हैं।
यह कहना गलत नहीं होगा कि दूसरी ओर युवा वर्ग जनसंचार की चमक के माया जाल में फंसता जा रहा है। आज युवाओं में तेजी से पनप रहे मनोविकारों, दिशाहीनता को न्यू मीडिया से जोड़कर देखा जा सकता है। पश्चिम का अंधा अनुसरण करने की चाहत उन्हें आधुनिकता का पर्याय लगने लगी है। इनसे युवाओं की पूरी जीवन-शैली प्रभावित दिखलाई पड़ रही है जिससे रहन-सहन, खान-पान, वेषभूषा और बोलचाल सभी समग्र रूप से शामिल है। शराब और धूम्रपान उन्हें एक फैशन का ढंग लगने लगा है। नैतिक मूल्यों के हनन में ये कारण मुख्य रूप से उत्तरदायी है। आपसी रिश्ते-नातों में बढ़ती दूरियां और परिवारों में बिखराव की स्थिति इसके दुखदायी परिणाम हैं।
अगर आंकड़ों पर गौर करें तो 30 जून, 2012 तक भारत में फेसबुक व सोशल साइटों के उपयोग करने वालों की संख्या लगभग 5.9 करोड़ है जो 2010 की तुलना में 84 प्रतिशत अधिक है। इन 5.9 करोड़ लोगों में लगभग 4.7 करोड़ युवा वर्ग से सरोकार रखते हैं। अगर आंकड़ों को देखें तो भारत दुनिया का चैथा सबसे अधिक फेसबुक का इस्तेमाल करने वाला देश बन गया है। इसमें दो राय नहीं कि डिजिटल क्रांति ने युवाओं की निजता को प्रभावित किया है और युवा अपनी सोच से अपने समाज को प्रभावित कर रहे हैं।
वहीं इंडिया बिजनेस न्यूज एंड रिसर्च सर्विसेज द्वारा 1200 लोगों पर किए गए सर्वेक्षण जिनमें 18-35 साल की उम्र के लोगों को शामिल किया गया था। इसमें करीब 76 फीसदी युवाओं ने माना कि सोशल मीडिया उनको दुनिया में परिवर्तन लाने के लिए समर्थ बना रही है। उनका मानना है कि महिलाओं के हित तथा भ्रष्टावचार विरोधी आंदोलन में ये सूचना का एक महत्वपूर्ण स्रोत साबित हुई है। करीब 24 फीसदी युवाओं ने अपनी सूचना का स्रोत सोशल मीडिया को बताया। करीब 70 फीसद युवाओं ने ये भी माना कि किसी समूह विशेष से संबद्ध हो जाने भर से जमीनी हकीकत नहीं बदल जाएगी, बल्कि इसके लिए बहुत कुछ किए जाने की जरूरत है।
वास्तव में न्यू मीडिया ने ग्लोबल विलेज की अवधारणा को जन्म दिया है।इसके के अंतर्गत आने वाले माध्यमों ने युवा वर्ग पर अपना व्यापक प्रभाव छोड़ा है। इनका प्रभाव इतना शक्तिशाली है की आज के युवा इन माध्यमों के बिना अपने दिन की शुरुआत ही नहीं कर सकते। मोबाइल यह एक ऐसा माध्यम है जिससे दूर बैठे व्यक्ति के साथ बात की जा सकती है तथा अपने हसीन पलों को चलचित्रों के रूप में कैद किया जा सकता है। यह तो इसका सदुपयोग है परंतु आज युवा इस माध्यम का गलत प्रयोग कर एमएमएस बनाते हैं। इसी प्रकार इंटरनेट जनसंचार माध्यमों में सबसे प्रभावशाली है जिसने दूरियों को कम कर दिया है। इसका अधिकतर उपभोग युवा वर्ग द्वारा किया जाता है जहां इसके द्वारा युवाओं को सभी जानकारियां उपलब्ध होती हैं। ये ज्ञानवर्धन में तो सहायक है परंतु आज वर्तमान समय में युवा द्वारा इसका दुरूपयोग अधिक होता है। हालांकि संस्कारी व्यक्तियों द्वारा इस मीडिया का सही उपयोग किया जा रहा है वहीं लगभग 100 में से 85 प्रतिशत लोग पोर्न साइटों का प्रयोग करते हैं और हैंरतअंगेंज करने वाली बात है कि सर्वाधिक विजिटर भी इन पोर्न साइटों के ही हैं। इन अश्लील साइटों पर जाकर वे अपनी मन को शांत करते हैं। परंतु वे यह नहीं जानते कि इससे उनका और समाज दोनों का नैतिक पतन होता है। साथ ही इंटरनेट के अधिक उपयोग ने साइबर क्राइम जैसे अपराधों को जन्म देकर युवाओं में अपराध करने का न्य रास्ता उत्पन्न कर दिया है। जिससे आज का युवा वर्ग मानसिक, शारीरिक और आर्थिक पतन की ओर अग्रसरित हो रहा है। जो हमारे समाज के लिए चिंता का विषय है।
न्यू मीडिया और सोशल मीडिया
शायद यह बताने की ज़रुरत नहीं है की सोशल मीडिया का प्रभाव समाज पर कैसा
है|क्योंकि आज यह हम सभी के लिए सब से अधिक विजिट करने वाला साईट बन गया है|हम
खाली वक़्त में हमेशा फेसबुक आदि को ही अपना दोस्त बनाते हैं|इसने हमारे बीच
दूरियों को मिटा दिया है|इसे के चलते हम एक ही पेज पर देश दुनिया की ख़बरें, दुनिया
के किसी भी कोने में घटित होने वाली वाली आम सी घटना भी हमारे सामने मिनटों में
आजाती है|इसकी शक्ति का अंदाज़ा यही से लग जाता है की आज कोई भी पेज हो, वहां पर
शेयर का आप्शन होता है और कहा जाता है की इस को फेसबुक पर शेयर करें|मकसद साफ है
की सब को पता है की अगर हम फेसबुक पेज पर चले गए तो मिनटों में अरबों लोग इसके
दर्शक या पाठक हो जायेंगे|इन सब का कारण इस पर किसी और का नियंत्रण न होना है हर
कोई पत्रकार और हर किसी का मोबाइल मीडिया हाउस है|शायद यही इसका नकारात्मक पक्ष भी
है|क्योंकि कई बार इस आज़ादी का गलत फायदा भी उठाया जाता है|हल में हुए कई बरी
घटनाएँ इस की ताज़ा मिसाल है|
वास्तव में
मोटे तौर पर न्यू मीडिया और खास तौर पर सोशल मीडिया के उपयोग, दुरुपयोग, आचरण, अधिकारों और दायित्वों का मुद्दा विचार-विमर्श योग्य है। इस
मीडिया ने इंटरनेट की मुक्त प्रकृति का लाभ तो उठाया है लेकिन उसके अनुरूप जिस
किस्म का दायित्वबोध होना चाहिए वह कहीं दिखाई नहीं देता। चीन में फौजी बगावत की
अफवाहें फैलाने में सोशल मीडिया पर सक्रिय तत्वों का हाथ रहा। उधर इंग्लैंड के
दंगों के दौरान ब्लैकबेरी संदेशों, फेसबुक और एसएमएस के जरिए ऐसी अफवाहें फैलाई गईं कि फलाँ जगह पर 50 नकाबपोश हमलावर युवक पहुँचे हैं। अभी-अभी ओमान सरकार ने भी
बेबुनियाद अफवाहें फैलाने के लिए सोशल मीडिया पर सक्रिय लोगों को चेतावनी दी है।
और अपने ही देश में ईद के दिन फैली इस अफवाह में भी आधुनिक संचार माध्यमों का ही
हाथ है कि महिलाओं द्वारा लगाई जाने वाली मेहंदी में जहर मिला हुआ है। यह संदेश
मिलने के बाद हजारों भयभीत मुस्लिम महिलाएँ अस्पताल पहुँची थीं। भारत में अनेक
दंगे जैसे मुज्ज़फर नगर दंगा आदि इसी आज़ादी का नाजायज़ फायदा को उठा कर करवाया गया|
न्यू
मीडिया और सरकार
न्यू मीडिया
का प्रभाव राजनीती पर भी पर है|आज यह राजनीती का सक्रीय माध्यम बन चूका है|चुनावों
से लेकर शासन तक इस ने जो सकारात्मक और नकारात्मक प्रभाव डाला है उस से कई सरकारों
को तो भारी फायदा हुआ है तो कई सड़क पर चक्कर लगा रहे हैं|यही कारण है की बहुत सी
पार्टियाँ इस के वजूद को ले कर हो हल्ला मचा रही हैं|इस पर लगाम कसने की बात उनके
चर्चा में शामिल है|इसी कारण काटजू ने प्रधानमंत्री को
पत्र लिखकर प्रिंट मीडिया के समान इलेक्ट्रॉनिक एवं समाचार से जुड़ी वेबसाइट्सों को
भी प्रेस परिषद के दायरे में लाने का अनुरोध किया था। इस बहस पर घमासान मचा हुआ
है। अगर देखा जाए तो पूर्व भारत सहित दुनिया भर में पिछले दो-ढाई सालों में जो
आंदोलन हुए, उसमें न्यू-मीडिया की भूमिका को देख कर सरकारें
सत्ता व शासन को लेकर चिंतित रहते हैं|इसी वजह से समाजवादी पार्टी और जनता दल यूनाइटेड जैसे दल सोशल मीडिया पर अस्थायी पाबंदी
की वकालत करते हैं। न्यू-मीडिया में बढ़ती अश्लीलता को
ध्यान में रखते हुए केंद्रीय दूरसंचार मंत्री कपिल सिब्बल ने विभिन्न सोशल साइटों
को आपत्तिजनक और अश्लील सामग्री हटाने की चेतावनी दी थी। फेसबुक और गूगल सहित
विभिन्न साइटों द्वारा कंटेंट पर निगरानी करने को लेकर हाथ खड़े करने पर मुकदमेबाजी
भी हुई। जिसमें कोर्ट ने सरकार की नीतियों को सही ठहराया है। इसके विरोध में
न्यू-मीडिया ने कहा कि जिस प्रकार से ‘सागर की लहरों को जहाज तय नहीं करते‘,
उसी प्रकार से न्यू-मीडिया पर निगरानी और उसके
कार्यक्षेत्र में हस्तक्षेप करना जायज काम नहीं है। जिस प्रकार से न्यू-मीडिया ने
संपूर्ण संसार में पूंजीवादी, अर्थवादी लोकतांत्रिक सरकार के खिलाफ होने वाले आंदोलनों को
बल दिया, और इसी दृष्टिकोण में विभिन्न देशों की सरकारों
ने न्यू-मीडिया की प्रतिनिधि साइटों पर लगाम कसने की ठान ली है ताकि यह मीडिया
सरकार पर हावी न हो सके। इसका तात्पर्य यह है कि विभिन्नि देशों की सरकारें
न्यू-मीडिया पर नियंत्रण के वैश्विक उपायों को थोप रही है। जिनका प्रतिरोध करना
न्यू-मीडिया के लोकतांत्रिक ढांचा को बनाए रखने के लिए आवश्याक है। क्योंकि
लोकतंत्र और आम आदमी के अस्तित्व की लड़ाई लड़ने वाले सोशल मीडिया को अब अपने
अस्तित्व की लड़ाई भी लड़नी पड़ेगी। इसी क्रम में अगर इन सोशल साईटों पर नकेल कसी भी
जाती है, तो यह निश्चित ही है कि नया मीडिया,
नया माध्यम बनकर उभरेगा। इसलिए सरकारों को
चाहिए कि अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता को थोपने के बजाय अपनी नीतियों को जन-जन तक
पहुंच में इस मीडिया का सहयोग लें और उन लोगों की तरफ भी ध्यान दें जिनके नसीब में
दो वक्त की रोटी भी नहीं है।
thanks sir jabarjast jo students hindi padhana chahate hai unke liye ek achhi simple and easy language
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